Author: DS

  • रघुराम राजन : एक अचूक अर्थशास्त्री

    रघुराम राजन : एक अचूक अर्थशास्त्री

    मैने कुछ दिनों पहले तय किया कि मैं रघुराम राजन की पुस्तक  : I do what I do को पढ़ूंगा। तो मुझे ये खयाल क्यों आया ?

    आइए जानते हैं!

    रघुराम राजन के बारे में बैंकिंग जगत से जुड़े लोग सभी उनको जानते हैं या उनके नाम से तो सभी वाकिफ हैं। रघुराम इंडिया के भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे कुछ सालों पहले। उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर कई अभूत पूर्व काम किए हैं। और मैं इसी बात को लेकर काफी उत्सुक था कि उनके कार्य काल में किस तरह के बदलाव लाए गए। मुझे पूरी स्टोरी पता करनी है और इसीलिए मैंने उनकी ये किताब I do what I do को पढ़ने का फैसला किया।

    रघुराम राजन : इंटरनेट से

    यदि आप भी रघुराम राजन और भारत की अर्थव्यवस्था में हुए कुछ क्रांतिकारी बदलावों को जानना चाहेंगे तो इस किताब को जरूर पढ़ें। आपको बहुत मजा आएगा।

    आज हमारी बैंकिंग व्यवस्था ने कई नए रूप धारण किए हुए हैं। स्टार्ट करते हैं UPI से। UPI जो आपको आज कहीं भी कभी भी अपने स्मार्ट फोन के जरिए किसी को भी पैसे देने और किसी से भी पैसे लेने के लिए इस्तेमाल होता है। ये UPI का नेटवर्क चालू हुआ था गवर्नर रघुराम राजन के समय। और आज इस व्यवस्था को बड़े से बड़े देश देख रहे हैं और तारीफ कर रहे हैं।

    UPI का इस्तेमाल जब स्टार्ट हुए तो मुझे भी नहीं पता था कि इतनी जल्दी इतने सारे ट्रांजेक्शन सिर्फ स्मार्ट फोन से ही हो जाता करेंगे। ना कैश और ना कार्ड, सिर्फ स्मार्ट फोन पे ही। आज नुक्कड़ के हर कोने में, है ठेले में और बड़ी से बड़ी दुकान पर UPI से लेन देन हो रहा है। और अब पैसा हैंडल करना बहुत ही सरल हो गया है।

    दूसरा जो भूत पूर्व काम श्री रघुराम राजन ने किया वो है कि अब बैंकिंग के क्षेत्र में ना सिर्फ बड़े बैंक बल्कि स्मॉल फाइनेंस बैंक और पेमेंट बैंक भी उतर चुके हैं जिन्होंने भारतीय बैंकिंग को और प्रभावशाली बनाने में अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने बैंकिंग लाइसेंस बांटने का फैसला किया लेकिन बड़े पूंजीपतियों को इस दायरे से बाहर रखा। इतनी पारदर्शिता सचमुच तरीफेकाबिल है।

    स्मॉल फाइनेंस बैंक छोटे लोन बांटकर छोटी छोटी बिजनेस इकाइयों को जिन्हे हम SME के नाम से जानते हैं अब आगे बढ़ रही हैं। पेमेंट बैंक के जरिए अब टेलीकॉम कंपनियां भी बैंकिंग के रोल में आ गई हैं जिससे बैंकिंग को सेवाओं को देश के कोने तक पहुंचाया जा सका है।

    एक समय ऐसा था कि बैंकों में बड़े पूंजीपति लुटेरों का साम्राज्य स्थापित था। हम सबने विजय माल्या, नीरव मोदी जैसे बैंक डिफॉल्टरों के बारे में काफी कुछ मीडिया पर सुना और देखा होगा। जब रघुराम राजन ने गवर्नर का पद संभाला तो उन्होंने इन बड़े डिफॉल्टरों को बैंक का लोन चुकाने के लिए बाध्य कर दिया।

    उनके बैलेंस शीट को क्लीन अप करने की पहल से पब्लिक का बहुत सारा पैसा वापस लौटा और अन्य बड़े डिफॉल्टरों को सबक मिला।

    नोटबंदी भी उन्ही के समय में हुई मगर ये अटकलें आज भी लगाई जाती हैं कि शायद रघुराम राजन का फैसला ये नहीं था। हालांकि उनके समय में ही नोट बंदी की बात चल रही थी मगर उन्होंने इसे खारिज कर दिया था।

  • ऑटो डेबिट को ना करके अपने खर्चे बचाएं और बचत बढ़ाएं

    आज पर्सनल फाइनेंस से जुड़ी एक प्रॉब्लम को मैंने सुलझा लिया|  मेरा बिजली का बिल जो आम तौर पर सात सौ रुपये से हज़ार रुपये के बीच में अक्सर आता है वो लाखों में आ गया था कुछ महीनों पहले|  मेरा बिल अमाउंट आया – एक लाख 90 हजार समथिंग(something)|  मैंने फिर  बिजली ऑफिस में बात की तब पता चला की मेरी बिलिंग में गलती हुई है|  मीटर रीडिंग जो 75 यूनिट से 120 यूनिट आती है वो 18000 यूनिट की यूनिट दर्ज कर दी गई थी और उनका हिसाब लाखों में आ गया|  

    अभी अगर मैंने अपने क्रेडिट कार्ड से ऑटो डेबिट लगाया होता तो मैं तो परेशान हो गया होता|  एक बार जब पैसा कट जाता है तो उसको क्लेम करने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं पूंछो मत |  ये तो मैंने सोच समझ कर ऑटो – डेबिट फैसिलिटी हटा ली है अपने बिल पे सेवाओं से जिसने मुझे बचा लिया|  इसलिए मैं आपको भी यही कहूँगा कि आप भी अपने बिजली का बिल या कोई भी बिल पेमेंट करने से पहले यूज़ जांच परख लें|  शायद अमाउंट इतना बड़ा था जिसने मुझे मजबूर कर दिया यूज़ देखने और उसकी जांच करने को|  अगर यही अमाउंट 500 रुपये बढ़कर भी आता तो शायद मैं इसे नजर अंदाज़ कर देता |  

    इसलिए किसी भी बिल को ऑटो डेबिट से पे करने की बजाई थोडा समय निकालकर पे करें|  सोचिये कुछ सालों पहले हम अपने बिल पे करने के लिए लम्बी लाइन्स में लगा करते थे|  तो क्या अब हम कुछ मिनट निकालकर अपना बिल भी ठीक से नहीं पे कर सकते?  

    ऑटो-डेबिट ना जाने कितने पैसे हमारी जेब से निकालकर दूसरों को थमा देता है हमें पता ही नहीं चलता| OTT के सब्सक्रिप्शन, किसी हेल्थ आप का सब्सक्रिप्शन जो हम शायद कई महीनों से यूज़ नहीं कर रहे फिर भी उसका बिल भरे जा रहे हैं|  शायद महीने दो महीने काटने पर पता न चले मगर यही पैसे जब साल- दो साल कट जाते हैं तो एक अच्छी-खासी रकम का रूप ले लेते हैं|  इसलिए ऑटो-डेबिट मेरे हिसाब से जेब कतरे की तरह है इसे अपनी जेब ना काटने दें|  

    जो भी बिल आप पे करें उनका एक PDF निकाल कर अपने पास डॉक्यूमेंट कर ले|  मैं तो यूज़ प्रिंट कर लेता हूँ और फिलिंग करके रख लेता हूँ|  आप भी कर सकते हैं|  पेपर वर्क आज भी भरोसे और सुकून को पैदा करता है|  ऑटो – डेबिट के कारण जो पैसे कट जाते थे फिजूल में वो अब बच जायेंगे|  इसलिए ऑटो-डेबिट नहीं लगाना सेविंग्स का एक अच्चा तरीका है|  इसे अपनाये|  

    तो आज से ही नो ऑटो-डेबिट फॉर बिल पेमेंट्स|  

    हाँ अगर आपकी लोन्स की किश्त जा रही है तो उसको ऑटो-डेबिट से पे करते रहें|  लोन के कागज तो आपने साइन करके दिए हैं|  अगर ज्यादा पैसे कट भी जाते हाँ तो उसे आप आगे की पेमेंट्स से एडजस्ट भी करवा सकते हैं|  इसलिए लोन में ऑटो-डेबिट को रोकने कि कोई जरुरत नहीं है|  

    हाँ आप ऑटो-डेबिट वहाँ भी करें जहां आपको सेविंग्स करने के मौके मिलें|  जैसे मैंने अपने लिए मुचुअल फंड की SIP ली है और मैं SIP रूट से ही स्टॉक मार्किट में इन्वेस्ट कर रहा हूँ|  SIP के जरिये पैसे फिक्स डेट को बैंक अकाउंट से कटकर मुचुअल फंड में चला जाता है और उतने के यूनिट्स खरीद लिए जाते हैं|  ऐसे ही सैलरी से ही PF कट जाता है| वो भी एक तरह का ऑटो-डेबिट सुविधा ही है|  मैंने अपने PF में एडिशनल PF भी कई साल तक कटवाए|  उसकी बदौलत जब हमारी कंपनी ने नया सैलरी स्ट्रक्चर का ऐलान किया तो मुझे अरीअर्स के रूप में अच्चा खासा पैसा मिला जिसमे ऊपर से ब्याज भी कमा लिया|  

    इसलिए अब हम ये कह सकते हैं कि सेविंग्स को ऑटो-मोड पर रखें और जहां पर खर्च करना हो वहाँ से ऑटो-डेबिट हटा लें|              

  • 15g/h फॉर्म क्या होता है और क्यूँ भरें

    15g/h फॉर्म क्या होता है और क्यूँ भरें

    मैं अक्सर एफडी(FD) किया करता हूँ| मैं उस दिन खुश था ये सोचकर कि ऍफ़ डी में पैसे डालकर मेरी अच्छी खासी सेविंग्स होती रही हैं| बैंक एफडी बढ़िया स्कीम है| बैंक ऍफ़डी पर ब्याज भी बढ़िया मिल जाता है| जरूरत पड़ने पर अपनी एफडी को तोड़कर जब चाहे पैसे भी निकाल लें।

    मैं खुश था ये बात सोचकर की मेरी अच्छी सेविंग्स होती जा रही हैं। मगर फिर मुझे एक दिन पता चला की ऍफ़डी करने पर मुझे इस तरफ नुकसान भी हो रहा है! ये मुझे तब पता चला जब मैंने एक दिन अपनी बैंक स्टेटमेंट चेक करी|   

    जी हां!

    आप जो एफडी करते हो उस पर आपको एक टैक्स चुकाना होता है जिसे कहते हैं TDS। तो आइये जानते हैं कि TDS किसे कहते हैं और TDS के टैक्स को कैसे बचाएं| 

    TDS क्या है?

    TDS अंग्रेजी के तीन शब्दों के पहले अक्षर हैं| T का मतलब टैक्स, D का मतलब डिडक्शन और S का मतलब होता है सोर्स| TDS का मतलब हुआ कि जहाँ पर, जिस पॉइंट पर आय मिल रही हो वहीँ पर टैक्स काटकर बाकी इनकम लाभार्थी को देना| जैसे आपने देखा होगा कि आपकी सैलरी कुछ कट कर आती है| बैंक खाते में पूरी सैलरी में से जो कट कर सरकार के पास चला जाता है उसे ही TDS टैक्स कहते हैं|

    इनकम टैक्स के नियम के अनुसार यदि आपकी इनकम सालाना 2,50,000/- रुपये से ज्यादा होती है तो आपको TDS देना पड़ेगा|  यानि कि यदि आपकी इनकम 2,50,000/- तक है तो आपको TDS टैक्स नहीं देना है| 

    बैंक ऍफ़डी पर कितना TDS लगता है?

    बैंक ऍफ़डी पर आपको 40000 हज़ार तक कोई टैक्स नहीं देना होता है|  यानि आपका मूलधन यदि आपको 40,000 रुपये या उससे कम का ब्याज दे रहे हैं तो आपको कोई भी किसी प्रकार का टैक्स नहीं कटेगा|  मगर जैसे ही आप को 40,000 रुपये से ज्यादा ब्याज मिलेगा आपको 40000 से बढ़ी ब्याज राशि पर 10% की दर से TDS कटवाना होगा|

    (यही TDS 10% से बढ़कर 20% हो जायेगा अगर आपके बैंक ऍफ़डी पर आपका PAN नंबर नहीं जुदा है|  इसलिए कृपया इसे भी देख लें ताकि आपको लेने के देने ना पड़ जाएँ)   

    TDS कब कटेगा

    TDS का पैसा बैंक हर तिमाही के अंत में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को जमा कर देती है|  यानि जो भी उस तिमाही में आपने ब्याज कमाया होगा उसका 10% या फिर जैसा भी हो, आपके खाते से काटकर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को ट्रान्सफर कर दिया जायेगा|  जैसे पहली तिमाही का TDS 30 जून को कटेगा| वैसे ही दूसरी तिमाही का पैसा सितम्बर के माह में और तीसरे तिमाही का दिसंबर और चौथे और अंतिम तिमाही का TDS मार्च 31 से पहले काटकर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को दे दिया जाता है|

    अब हमने तो यही सोचकर पैसे अपनी मैडम के नाम से बैंक एफडी में फिक्स किये थे कि उसमे कोई टैक्स नहीं लगेगा जो कि सही है फिर भी TDS टैक्स जड़ दिया गया बैंक द्वारा हमारी मैडम के एफडी पर|  हम हैरान – ऐसा क्यूँ?  

    15g फॉर्म भरकर TDS बचाएं

    ऐसा इसलिए हुआ हमारे साथ क्यूंकि हमने बैंक में बैंक ऍफ़डी पर 15g फॉर्म नहीं भरा था| जी हाँ – 15g फॉर्म|  15g फॉर्म वो फॉर्म है जिसे हमें भरकर वित्त वर्ष के शुरुआत में ही बैंक में जमा कर देना चाहिए|  ऐसा करने से बैंक ऍफ़डी पर कोई TDS नहीं देना होगा|    

    तब मुझसे बैंक ऍफ़डी पर TDS बचाने के लिए फॉर्म 15g फॉर्म भरवाया गया|

    इनकम टैक्स अधिनियम के अनुसार 15g वो दस्तावेज है जिसे आप भरकर बैंक में जमा कर TDS से छुटकारा पा सकते है| 

    15g Vs 15h

    यहाँ पर आपको मैं ये बता देना चाहता हूँ कि यदि आप साधारण व्यस्क है तो आप 15 g भरेंगे|  मगर यदि आप सीनियर सिटीजन या यूँ कहें कि वरिष्ठ नागरिक हैं तो आपको 15 g की जगह 15 f फॉर्म भरना होगा|  इसलिए यदि आपकी उम्र 60 साल या उससे अधिक हो गई है तो आपको 15h फॉर्म भरना होगा| 

    फॉर्म 15 G का Application Form

    फॉर्म 15 H का Application Form

    आम तौर पर ये फॉर्म्स आपको अपने बैंक के काउंटर पर पूंछने से आसानी से मिल जायेगा| आज कल तो फॉर्म 15 G/H ऑनलाइन भी भरा जा सकता है| फॉर्म भरके जमा करने के बाद उसकी रसीद जरूर रख लें|  |

    फॉर्म 15 G/H कब तक मान्य रहेगा?

    फॉर्म 15 G/H पूरे एक वित्त वर्ष के लिए मान्य रहता है| ध्यान रहे कि वित्त वर्ष 1 अप्रैल से शुरू होकर 31 मार्च को समाप्त होता है| और TDS तीन महीने में एक बार कटेगा| इसलिए यदि आप वित्त वर्ष के मध्य 15g फॉर्म जमा करेंगे तो वो अगले तिमाही से मान्य होगा|   

    कैसे भरें फॉर्म 15g/h

    फॉर्म भरना काफी आसान है| आपको इस फॉर्म में अपनी निजी जानकारी देनी होती है और ये undertaking देनी होती है कि आपकी कोई और आय का श्रोत नहीं है जो आय कर के दायरे में आये| 

    तो फॉर्म को भरने के लिए आपको सबसे पहले तो ये बता दूँ कि पैन कार्ड अनिवार्य है|  साथ ही आपके बैंक अकाउंट की डिटेल्स जैसे बैंक अकाउंट 15g/h नम्बर इत्यादि| 

  • डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड: किसे लें

    डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड: किसे लें

    डेबिट कार्ड या फिर क्रेडिट कार्ड:  कौन सा कार्ड रखना सही होता है|  आइये इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि किस तरह हम डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड के बीच के फायदे और नुक्सान को समझें|  इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़कर आपको दोनों कार्ड के बीच के अंतर भी पता चलेगा| 

    देखिये बात शुरू करते हैं डेबिट कार्ड से|  डेबिट कार्ड को हम क्यूँ रखें|  सबसे पहले आप इस बात को समझें कि डेबिट कार्ड है क्या और बैंकिंग वाले कौन से काम हम डेबिट कार्ड से कर सकते हैं| 

    डेबिट कार्ड है क्या?

    डेबिट कार्ड(Debit Card) एक प्लास्टिक से बना कार्ड होता है| डेबिट कार्बैंड को बैंक अकाउंट से जोड़कर बैंकिंग के काम बैंक ब्रांच से बाहर से भी कहीं से और कभी भी किये जा सकते हैं|  मान लेते हैं कि आपके पास एक सेविंग बैंक अकाउंट है|  आप चाहते हैं कि आप अपने बैंक अकाउंट से कहीं भी और कभी भी पैसे निकाल पायें|  आप ये नहीं चाहते हैं कि सिर्फ पैसे निकालने आपको बैंक में आकर लम्बी लाइन में लगना पड़े और उससे पूरा दिन खराब हो| आप दिनभर की असुविधा और लम्बी लाइन में नहीं खड़ा होना चाहतेतो तो आप बैंक मेनेजर से मिलकर डेबिट कार्ड जरुर प्राप्त करें| 

    डेबिट कार्ड को इस्तेमाल करके पैसे निकलने के लिए जगह जगह एटीएम(ATM) मशीनें लगी मिलेंगी|  ज्यादातर पब्लिक की भीड़ भाड़ वाली जगह पर आपको दो-चार एटीएम आराम से मिल ही जायेंगे|  आपको बस अपना एटीएम(ATM) कार्ड उस एटीएम मशीन में डालना है और विधि पूर्वक आप पैसे निकाल पाएंगे|  

    डेबिट कार्ड को हम ये कह सकते हैं कि एक तरह की बैंकिंग सुविधा है जिसमे आप अपने बैंक अकाउंट में जमा पैसे आसानी से और अपनी सुविधा अनुसार निकाल सकते हैं|  आपको पैसे निकालने के लिए बैंक जाने की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी| 

     डेबिट कार्ड से पैसे निकालने के अलावा और क्या कर सकते हैं?

    जैसे कि अब आप जान गए हैं कि डेबिट कार्ड आपके बैंक अकाउंट से लिंक रहता है तो आप बैंक अकाउंट में कई सारे काम भी कर सकते हैं|  आइये जानते हैं उन कुछ सुविधओं के बारे में|  ध्यान दें कि ये सुविधाएँ किसी बैंक में ज्यादा तो किसी बैंक में कम हो सकती हैं| डेबिट कार्ड से जुडी सुविधाएँ इस बात पर भी निर्भर करेंगी कि आपने किस तरह का डेबिट कार्ड लिया है|  डेबिट कार्ड कई रूप, रंग और अलग अलग सुविधाओं के साथ आते हैं|

    (SBI डेबिट कार्ड्स और उनसे जुडी सुविधाओं के बारे में जानने के लिए यहाँ लिक्क करें

    सबसे पहली सुविधा जो आपको डेबिट कार्ड पर मिलती है पैसे निकलने के अलावा वो है – अपने अकाउंट में बैलेंस की जानकारी|  जी हाँ आप जब चाहे अपना कार्ड स्वाइप(Swipe) करके अपना बैलेंस जान सकते हैं| 

    दूसरी सुविधा होती है फण्ड ट्रान्सफर(Fund Transfer) की|  आप अपने बैंक अकाउंट से किसी दूसरे के बैंक अकाउंट में पैसे ट्रान्सफर कर सकते हैं|  ध्यान रहे कि दोनों बैंक अकाउंट एक ही बैंक के हों|  अगर आप एक बैंक से दूसरे बैंक में फंड्स ट्रान्सफर करना चाहते है जो फ़ास्ट भी हो और सुविधाजनक तो आप NEFT/RTGS सेवाएँ यूज़ कर सकते हैं| 

    (जानें कैसे फण्ड ट्रान्सफर कर सकते हैं आप एक बैंक से दूसरे बैंक में बिना चेक लिखे या कैश जमा किये)

    तीसरा इस्तेमाल जो आप डेबिट कार्ड से कर सकते हैं वो है चेक बुक डिमांड|  आप अपने बैंक के एटीएम मशीन से चेक बुक आर्डर कर सकते हैं|  आपकी चेक बुक कुछ ही दिनों में आपके घर पहुँच जाएगी| आपको कोई जरुरत नहीं है अपने बैंक ब्रांच जाने की|

    चौथा इस्तेमाल आप जो एटीएम कार्ड का कर सकते हैं वो है कि आप अपने एटीएम कार्ड से अपने लोन खाते का पेमेंट(Payment) कर सकते हैं|  आपको अपना लोन चुकाने के लिए बार-बार बैंक नहीं भागना पड़ेगा|  बस आप अपने बैंक के निकटतम एटीएम में जाएँ और अपने लोन खाते में पैसा ट्रान्सफर कर दें|  आपको इसके लिए अपना लोन खाता का नंबर पता होना चाहिए|  पांचवां इस्तेमाल है डेबिट कार्ड का पिन(PIN) बदलना|  अगर आपको अपने डेबिट कार्ड का पिन बदलना हो तो आप वो काम भी आसानी से एटीएम मशीन में डेबिट कार्ड की मदद से कर सकते हैं|   

    अब आते हैं पांचवें इस्तेमाल पर: डेबिट कार्ड से आप ऑनलाइन शॉपिंग कर सकते हैं| ऑनलाइन ट्रेन या प्लेन की टिकट, होटल की बुकिंग, बिजली बिल, टेलीफोन बिल या गैस के बिल का भुगतान और ना जाने कितने ही ऑनलाइन होने वाले कामों के लिए आप अपना डेबिट कार्ड यूज़ कर सकते हैं|

    (यहाँ क्लिक करें “डेबिट कार्ड ऑनलाइन शॉपिंग” जानने के लिए)

    डेबिट कार्ड से अपनी गाड़ी में आप पेट्रोल भरवा सकते हैं| जी हाँ, डेबिट कार्ड का इस्तेमाल कैशलेस पेमेंट(Cashless Payment) के लिए कर सकते हैं| आपको मर्चेंट(Merchant) के पेमेंट टर्मिनल(Terminal) पर अपना कार्ड स्वाइप करना है और बस!

    (यहाँ क्लिक करें जानने के लिए: “डेबिट कार्ड से कैशलेस पेमेंट कैसे करें)

    इस तरह आपने देखा कि डेबिट कार्ड बैंकिंग से जुड़े कार्यों के लिए कितना फायदेमंद है| इसलिए हम सभी के पास अपना डेबिट कार्ड तो होना ही चाहिए|

    अब आते हैं क्रेडिट कार्ड पर और जानते हैं कि क्या क्रेडिट कार्ड डेबिट कार्ड से ज्यादा फायदे देता है या नहीं|

    क्रेडिट कार्ड से जुड़ी बातें

    क्रेडिट कार्ड(Credit Card) के बारे में सबसे पहले ये जान लेते हैं कि क्रेडिट कार्ड में जो क्रेडिट शब्द है उसका मतलब: उधार(Loan)| क्रेडिट कार्ड में क्रेडिट शब्द ये बता रहा है कि ये कार्ड आपको उधार देने और उधारी में पैसों के इस्तेमाल वाला कार्ड है|

    दूसरी बात ये कि क्रेडिट कार्ड आपको अपने बैंक अकाउंट पर कोई मदद नहीं करता है| हालाँकि क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड सुनने में ऐसे लगते हैं जैसे मान लीजिये कि दोनों एक ही फल की दो अलग-अलग किस्मे हैं| मगर ऐसा बिलकुल नहीं है| दोनों आम की दो अलग-अलग किस्मे नहीं हैं बल्कि एक आम है तो दूसरा अंगूर|

    इसलिए चलिए इसी दिशा में चर्चा को आगे बढ़ाते हैं और समझते हैं कि किस तरह क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड बिलकुल अलग-अलग कार्ड हैं |

    आपके नहीं, बैंक के पैसे

    क्रेडिट कार्ड में आपके पैसे नहीं बैंक के पैसे उधार में मिलते हैं| जब आप डेबिट कार्ड यूज़ करेंगे तो आप अपने अपने खुद के पैसे यूज़ करते हैं| आप वो पैसे यूज़ करते हैं जो आपने सेविंग बैंक में रखे हैं| लेकिन जब आप क्रेडिट कार्ड यूज़ करेंगे तब आपको बैंक की तरफ से पैसे मिलेंगे| वो आपके पैसे नहीं होंगे| आप क्रेडिट कार्ड से अपना बैंक अकाउंट लिंक नहीं कर सकते|

    क्रेडिट कार्ड पर ब्याज लगता है

    क्रेडिट कार्ड में क्यूंकि आप पैसे उधार लेकर इस्तेमाल करेंगे तो आपको उन पैसों पर ब्याज चुकाना होता है| क्रेडिट कार्ड पर ब्याज अन्य लोन की तुलना में कहीं अधिक रहता है| क्रेडिट कार्ड पर ब्याज की दर 2 से 3 प्रतिशत हर महीने हो सकती है|

    अक्सर हम सालाना ब्याज दर में बताते हैं| इस लिए आप कह सकते हैं कि आपको सालाना 24 प्रतिशत से लेकर 36 प्रतिशत या उससे भी अधिक हो सकता है|

    क्रेडिट कार्ड से कैश निकाल सकते हैं, मगर ब्याज पर

    जैसे आप डेबिट कार्ड का यूज़ करके एटीएम मशीन से पैसे निकल लेते हैं, वैसे ही आप क्रेडिट कार्ड से भी एटीएम मशीन पर जाकर कैश निकल सकते हैं| फरक ये आ जाता है कि क्रेडिट कार्ड में से आप जो पैसा कैश निकालेंगे उसके ऊपर आपको रोजाना के दर पर ब्याज चुकाना पड़ेगा| क्रेडिट कार्ड से पैसे निकलने को कैश एडवांस कहते हैं और इस पर लगे ब्याज को कैश एडवांस फीस (Cash Advance Fees)कहते हैं|

    क्यूंकि क्रेडिट कार्ड आपके बैंक से लिंक नहीं है, आप क्रेडिट कार्ड से कोई भी बैंक से जुड़े काम नहीं कर पाएंगे|

    क्रेडिट कार्ड क्यों लें

    जब क्रेडिट कार्ड हमें कोई भी बैंकिंग के काम के लिए यूज़ नहीं आता तो क्या क्रेडिट कार्ड लेना चाहिए?

    यदि आप अपने पैसों से अपने सारे काम कर लेते हैं तो क्रेडिट कार्ड की कोई जरुरत नहीं पड़ेगी| फिर भी क्रेडिट कार्ड के कुछ ऐसे नायाब इस्तेमाल हैं जिसकी जरुरत आपको पड़ सकती है|

    क्रेडिट कार्ड पर भारी डिस्काउंट और कैशबैक

    क्रेडिट कार्ड आपको ऑनलाइन शौपिंग और कैशलेस पेमेंट पर शानदार डिस्काउंट दिलवा देता है| आप ध्यान देना कि अमेज़न, फ्लिप्कार्ट, मिनट्रा जैसी शॉपिंग साइट्स पर डिस्काउंट और कैशबैक के ऑफर लाते रहता है|

    क्रेडिट कार्ड से क्रेडिट स्कोर में सुधार

    क्रेडिट कार्ड में यदि नियमित रूप से पैसे खर्च करते हैं और समय-समय पर नियमित रूप से भुगतान भी कर देते हैं तो आपकी क्रेडिट स्कोर को आप सुधार सकते हैं| और ये सिर्फ क्रेडिट कार्ड से ही संभव है| डेबिट कार्ड से नहीं| कई क्रेडिट एक्सपर्ट्स की यही सलाह भी रहती है कि आप अपना क्रेडिट स्कोर क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल से सुधार कर अपना क्रेडिट स्कोर बढ़ा सकते हैं|

    आपदा में संकट मोचन है क्रेडिट कार्ड

    क्यूँ ब्याज दें जब हम अपने बैंक अकाउंट में पैसे रखें हैं| मगर कभी कभी जब कोई आपदा या संकट की घडी दस्तक देती है तब आपके पास समय नहीं रहता बैंक जाने का, अपनी FD और RD तुडवाने का| ऐसे समय में अगर क्रेडिट कार्ड आपके हाथ में है तो किसी भी आपदा से पूरे आत्मविश्वास से आप लड़ सकते है और निपट सकते हैं|

    क्रेडिट कार्ड की भारी मान्यता

    यदि आप डेबिट कार्ड का यूज़ करते हैं तो हो सकता है कि कहीं पर आपको यूज़ इस्तेमाल करने में समस्या आ जाये| आपका डेबिट कार्ड कई जगहों पर स्वीकार ना किया जाए| लेकिन क्रेडिट कार्ड के साथ ऐसा नहीं है| क्रेडिट कार्ड से आप ज्यादा से ज्यादा जगहों पर पेमेंट कर सकते हैं|

    कई बार अन्तराष्ट्रीय पेमेंट करने में डेबिट कार्ड काम नहीं करता| लेकिन क्रेडिट कार्ड में ऐसी कोई समस्या नहीं आती| आप बड़ी सहूलियत से क्रेडिट कार्ड का यूज़ करके पेमेंट कर पाएंगे|

    क्रेडिट कार्ड का सबसे बड़ा नुक्सान है कि अगर आप बैंक के ब्याज का पेमेंट समय पर चुकता नहीं कर पाए तो आपको बड़ी भरी मात्र में ब्याज भरना पद सकता है| लेकिन आप यदि अनुशासन में इस्तेमाल करेंगे तो ऐसी कोई भी समस्या नहीं आएगी|

    व्यक्तिगत तौर पर मुझे ऐसा लगता है कि हमें दोनों – क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड दोनों ही रखने चाहिए| और जिसका जैसा जब उपयोग सामने आये वैसा उपयोग करना चाहिए|

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  • इन्टरनेट बैंकिंग के लिए सेफ बैंकिंग टिप्स

    इन्टरनेट बैंकिंग के लिए सेफ बैंकिंग टिप्स

    हम ऐसा क्या करें कि हम अपनी ऑनलाइन बैंकिंग को सुरक्षित रख साखें|  आइये इस पोस्ट में जानें कि कैसे हम अपनी इन्टरनेट बैंकिंग सेवाओं को सेफ रख सकते हैं इन 10 सुन्दर टिप्स के जरिये:

     अपना निजी लैपटॉप या डेस्कटॉप ही इस्तेमाल करें

    ऑनलाइन बैंकिंग के लिए सबसे पहले तो आप अपने निजी डेस्कटॉप या लैपटॉप का हिज इस्तेमाल करें|  करी बार ऐसा होता है कि हमारी संवेदन शील जानकारी जैसे login id और पासवर्ड इन्टरनेट ब्राउज़र की कूकीज में जाकर सेव ह जाती हैं|  और कूकीज से कोई भी उस जानकारी को आसानी से हैक कर सकता है| 

    इसलिए आप अपना स्वयं का ही डेस्कटॉप या लैपटॉप का इस्तेमाल करें ताकि आपकी जानकारी सुरक्षित रह सके|

    पब्लिक नेटवर्क का इस्तेमाल इन्टरनेट बैंकिंग के लिए ना करें

    कई बार हम जब रेलवे स्टेशन पर या एअरपोर्ट पर होते है तो वहां पर उपलब्ध  पब्लिक  वाई-फाई का इसेतमाल करते हैं|  ऐसी जगहों पर ऑनलाइन बैंकिंग का इस्तेमाल ना करें|  पब्लिक नेटवर्क से कोई भी आपके login डिटेल्स को चुरा सकता है|  हमेशा प्राइवेट वाई-फाई नेटवर्क का ही इस्तेमाल करें|  आप सदैव सुरक्षित रहेंगे| 

    ऑनलाइन बैंकिंग के लिए सेफ्टी लॉक जरुर चेक करें

    ऑनलाइन बैंकिंग को सुरक्षित बनाने के लिए वेब एड्रेस को लॉक कर दिया जाता है ताकि कोई भी फर्जी address बनाकर आपके login डिटेल्स ना चुरा ले|  इसलिए जब भी आप address bar में अपना ऑनलाइन बैंकिंग का  URL टाइप करेंगे वो URL एक्टिव होने के बाद एक सेफ्टी लॉक प्रदर्शित करेगा|  कुछ इस तरह:

    इस सेफ्टी लॉक के मौजूद होने पर ही आगे बढ़ें|  अगर आपको address bar में URL में सेफ्टी लॉक न दिखाई दे तो आप उस वेबसाइट पर अपना login डिटेल्स शेयर ना करें|  वो आपके लिए घातक हो सकता है| 

    ऑनलाइन बैंकिंग के पासवर्ड समय समय पर बदलते रहें

    सेफ बैंकिंग की टॉप टिप में सर्वप्रथम यही बात आती है कि आप अपने पासवर्ड समय समय पर बदलते रहें|  समय समय पर पासवर्ड बदलने से गलती से हुई गलती में यदि कही आपने अपने login दडिटेल्स यदि कहीं पब्लिक नेटवर्क पर शेयर कर लिए होंगे या किसी को पता चल भी गया होगा तो आपको पासवर्ड बदलने से सेफ्टी मिलेगी|  आपके बैंकिंग डिटेल्स की गोपनीयता बनी रहेगी| 

    अपना ईमेल और अपना मोबाइल नंबर जरुर रजिस्टर करवाएं

    अपने बैंक में aपना मोबाइल नंबर जरुर रजिस्टर करवाएं|  अपना मोबाइल नंबर रजिस्टर कराकर आप अपने अकाउंट के लेन-देन की जानकारी एस एम एस अलर्ट सेवा से प्राप्त करते रहेंगे|  यदि कोई आपकी login डिटेल्स से छेद खानी करने की कोशिश करेगा तो आपको तुरंत उसकी खबर एस एम एस सेवा से प्राप्त हो जाएगी| 

    वर्चुअल की बोर्ड का इस्तेमाल करें

    आपक इन्टरनेट बैंकिंग में यदि वर्चुअल कीबोर्ड की सेवा दी गई हो तो उसे जरुर इस्तेमाल करें|  वर्चुअल की बोर्ड ठीक पासवर्ड डालने की जगह के सामने दिया जाता है|  इस कीबोर्ड को इस्तेमाल करने के लिए आप माउस का इस्तेमाल करते हैं और वर्चुअल कीबोर्ड के अक्षर हर बार अपनी जगह बदल देते हैं|  इससे आपके login डिटेल्स को कोई कीबोर्ड की मदद से हैक नहीं कर पायेगा| 

    वर्चुअल कीबोर्ड कुछ इस तरह होता है:

     एंटी-वायरस वाले कंप्यूटर पर ही login करें

    आप जिस किसी भी कंप्यूटर या लैपटॉप का यूज़ करते हैं उस पर एंटी-वायरस सॉफ्टवेर डलवाना सुनिश्चित करें|  एंटी-वायरस सॉफ्टवेर आपके कंप्यूटर पर निहित जानकारी को किसी भी बाहर के आक्रमण से सुरक्षित रखता है|  कई बार हैकर्स ईमेल, वेबलिंक्स, विडियो लिंक्स के जरिये नुक्सान दायक सॉफ्टवेर प्रोग्राम आपके कंप्यूटर पर इंस्टाल करने की कोशिश कर सकते हैं| ऐसे सॉफ्टवेर को वायरस कहा जाता है जो आपकी जानकारी चुराने में मदद करते हैं|

    इसलिए अपने कंप्यूटर पर एंटी-वायरस सॉफ्टवेर जरुर इनस्टॉल कराएं|  यहाँ पर आपको नीचे कुछ लिंक्स दिए हैं जो आपको एंटी-वायरस सॉफ्टवेर की जानकरी दे रहे हैं|

  • प्लॉट खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें

    प्लॉट लेकर घर बनाने के लिए सबसे जरूरी कि हम जहां पर भी अपना प्लॉट लें पहले से सोच समझ लें और उसकी पूरी तरह से हर बिंदु से जांच पड़ताल कर लें। क्योंकि आप एक बार प्लॉट ले लेंगे तो फिर फैसले को बदल नहीं पायेंगे। प्लॉट खरीदना एक बड़ा निवेश होता है।

    तो वो कौन कौन सी बातें हैं जिनका हमें प्लॉट खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए। आइए जानें:

    प्लॉट की लोकेशन

    प्लॉट की लोकेशन सबसे ज्यादा महत्व रखती है। आप प्लॉट लेने के लिए उसे बिना देखे ना खरीदें। प्लॉट का फिजिकल इंस्पेक्शन बहुत जरूरी है।

    प्लॉट पर जाकर ये जरूर देखें कि वहां पर अभी जमीनी स्थिति क्या है। क्या वहां पर अभी बसाहट है ये नहीं?

    जहां पर बसाहट होती है वहां पर सड़कें, नालियां, घनत्व और जिस आर्थिक वर्ग के लोग रहते हैं वो तुरंत समझ में आ जाता है। लेकिन जहां पर बसाहट नहीं होती उस जगह का फ्यूचर समझ पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।

    इसलिए ये जरूर पूंछे कि आप जिस प्लॉट को देखने गए हैं वहां पर आस पास में कौन प्लॉट लिया है। उनकी थोड़ी सी जानकारी जरूर लें कि वो क्या करते हैं। उनका व्यवसाय इत्यादि।

    प्लॉट की लोकेशन से कनेक्टिविटी

    दूसरी बात जो आपको देखनी चाहिए कि आपके प्लॉट की कनेक्टिविटी कैसी है। क्या प्लॉट के पास कोई स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, कोई मंदिर, सरकारी कार्यालय इत्यादि कितनी दूरी पर हैं।

    इससे आपको भविष्य में अंदाजा लग जायेगा कि क्या आपके प्लॉट में जो घर बनेगा उसको आप किराए पर दे पाएंगे या नहीं। जहां पर स्कूल, कॉलेज या अस्पताल जैसी सुविधाएं होती हैं वहां पर लोग रहना पसंद करते हैं।

    मगर आपको इन सुख सुविधाओं के साथ ये भी देख लेना जरूरी होगा कि सड़क और यातायात आपके प्लॉट से सही हो। यानी कि सड़क बनी हो और इस पर यातायात सामान्य हो।

    प्लॉट आपका लैंड लॉक्ड न हो

    लैब्लॉक्ड का मतलब है कि चारों तरफ से जमीन। जो भी आप प्लॉट लेते हैं उस तक पहुंचने का रास्ता होना चाहिए।

    ज्यादातर प्लॉट जो वैध रूप से बिक्री होते हैं उनपर ये समस्या नहीं आती है। वो प्लॉट के सामने से सड़क जरूरी प्रस्तावित करते हैं। मगर आपको फिर भी फील्ड विजिट करके ये देख लेना चाहिए कि आपका प्लॉट लैंडलॉक्ड ना हो।

    कई बार मकान बने होते हैं और उनके बीच में से एक लीक भर निकली होती है। विक्रेता आपको आश्वासन देता है कि भविष्य में सड़क प्रस्तावित है। उनके झांसे में ना आएं।

    प्लॉट के कागज

    प्लॉट आप जिससे भी लें इसके चेन ऑफ़ टाइटल्स के बारे में जानकारी जरूर लें। आपको पता होना चाहिए कि आप किस्से प्लॉट ले रहे हैं। कई बार प्लॉट जो आपको बेंच रहे होते हैं वो उस प्लॉट के मालिक न होकर एजेंट या ब्रोकर होते हैं।

    ब्रोकर से प्लॉट दिखवाने और फाइनल करने में कोई दिक्कत नहीं है। मगर आपको फिर भी प्लॉट का असली मालिक पता होना चाहिए। क्योंकि जब तक आप प्लॉट के मालिक से नहीं मिलते हैं आप पक्के तौर पर ये नहीं जान सकते कि प्लॉट की वैधानिक स्थिति क्या है।

    इसके लिए आप प्लॉट के अड़ोसी पड़ोसियों से संपर्क करें। वो भी आपको विश्वसनीय जानकारी दे पाएंगे।

    प्लॉट की टाइटल डीड जरूर देखें

    अगर आप प्लॉट किसी व्यक्ति से ले रहे हैं तो आपको उस व्यक्ति के साथ बैठकर प्लॉट के कागज एक बार देखने चाहिए। यदि आप प्लॉट की रजिस्ट्री या टाइटल डीड देखने के लिए सक्षम नहीं हैं तो अपने साथ ऐसा व्यक्ति ले जाएं जो वो दस्तावेज देखकर आपको लीगल चीजें समझा सके।

    प्लॉट की टाइटल डीड में ये जरूर देखें कि प्लॉट की रजिस्ट्री कब कराई गई थी। कितना भुगतान किया गया था। प्लॉट का नक्शा है उसमें आपके अगल बगल किनको दर्शाया गया है।

    उसके बाद प्लॉट को किस तरह वर्गीकृत किया गया है है? क्या आपका प्लॉट किसी कृषि भूमि का टुकड़ा है या परिवर्तित भूमि में आ गया है। यदि परिवर्तित है तो क्या वो आवासीय है या कहीं व्यापारिक तो नहीं।

    जो प्लॉट नगर निगम में नहीं आते उनका भाव कम जरूर होता हैं मगर उनकी वैद्यता को आप परख नहीं सकते। वहां पर कल आपको बिजली , पानी और सड़क की सुविधाएं मिल पाएंगी इस बात पर संदेह रहेगा।

    इसलिए हो सके तो परिवर्तित प्लॉट ही लें। जिससे भविष्य में आपको दिक्कतों का सामना ना करना पड़े।

    प्लॉट पर आधारभूत सुख सुविधाएं जरूर हों

    आधारभूत सुविधाओं में बिजली, पानी और सड़क आते हैं। तो ये जरूर देख लें कि वहां पर बिजली , पानी और सड़क जैसी सुविधाएं मौजूद हों।

    सड़क अच्छी चौड़ी हो तो बढ़िया है। काम से कम दस फुट की सड़क तो मिलनी ही चाहिए। हो सके जितनी चौड़ी सड़क मिले उतना ही अच्छा रहेगा।

    पानी के लिए शायद नगर निगम का टेप वाटर अभी न मौजूद हो मगर फिर भी वहां पर बोर से पानी निकल सके ये जरूर जांच लें। कई बार पानी से सूखे इलाके में प्लॉट आपको सस्ते में मिल जायेगा मगर फिर आपको पानी की समस्या बनी रहेगी। और प्लॉट का मूल्य भी नहीं बढ़ेगा अगर आप उसे बेचना चाहो तो।

  • लोन से जुड़ी सीख: लोन का पैसा डाइवर्ट न करें

    आपकी लाइफ तब बदलती है जब आपकी इकॉनमी बदलती है

    आप चाहे कितनी भी बड़ी बड़ी बातें कर लें

    मगर जब तक आपका आर्थिक स्तर नहीं बदलता तब तक आपकी ज़िन्दगी नहीं बदलती

    इस दुनिया में आपको पहचान भी तभी मिलती है जब आपके पास सांसारिक साधन होते हैं

    और आपका आर्थिक स्तर तब बदलता है जब आपकी सोच बदलती है|

    मैंने देखा है कि लोग खुद ही अपना आर्थिक स्तर नहीं बदलना चाहते|  शायद वो इस बात को समझते नहीं हैं या अभी तक जानते नहीं हैं कि वो अपनी आर्थिक स्थिति के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं|  जैसे मैं आपको बताता हूँ कि मैंने बनकर की हैसियत से क्या देखा|  मैं आपको बताना चाहूँगा कि कैसे हमारी रूढ़िवादी सामाजिक रीतियाँ हमें गरीबी में जकड़ी हुई हैं| 

    कई सारे किसान भाई बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाते हैं|  किसान क्रेडिट भारत सरकार की किसान भाइयों के लिए महत्वकांक्षी योजना है|  किसान क्रेडिट कार्ड योजना में किसान मित्र अपने खेतों में फसल उगाने के लिए आने वाले खर्चे को बैंक से ऋण के रूप में प्राप्त कर सकते हैं|  किसान क्रेडिट कार्ड योजना में किसान मित्रों को उन्नत किस्म के बीज खरीदने, खाद खरीदने, सिंचाई और कीटनाशकों के लिए होने वाले खर्चे के लिए बहुत ही कम ब्याज पर ऋण मिल जाता है| 

    लेकिन किसान मित्र किसान क्रेडिट कार्ड इस लिए बनवाते हैं क्यूंकि वो इसे पर्सनल लोन समझते हैं|  पर्सनल लोन का मतलब निजी खर्चे|  अधिकाँश किसान मित्र जो किसान क्रेडिट कार्ड योजना में ऋण लेते हैं वो उस ऋण राशि को शादी के खर्चे में या पारिवारिक और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए खर्च कर देते हैं|  कई बार उन्हें घर परिवार में बीमार सदस्य के उपचार हेतु खर्चे करने पड़ते हैं तो वो अपना किसान क्रेडिट कार्ड का पैसा यूज़ कर लेते हैं| 

    बैंकिंग भाषा में इसे फंड का दुरूपयोग कहा जाता है|  फंड जो कि आपको खेती उपजाने के लिए दिया गया उसको आपने अपने निजी खर्चे में यूज़ कर लिया|  जाहिर सी बात है कि आप खेत में अच्छी फसल नहीं उगा पाएंगे और जब आपको ऋण राशी को ब्याज समेत लौटाने का समय आयेगा तब आप बैंक से डिफाल्ट कर जायेंगे और अपनी किश्तों को समय पर जमा नहीं कर पायेंगे|  एक बार जब आपकी किश्त टूटेगी तो आप के ऊपर पेनल्टी लगेगी और ज्यादा ब्याज लग्न शुरू हो जायेगा| 

    जहाँ आपको 7 % प्रति वर्ष का ब्याज देना पड़ रहा था अब आपको वहीँ 9, 10 या 11 प्रतिशत प्रति वर्ष ब्याज देना पड़ेगा|  और फिर बकाया राशी पर चक्र वृद्धि ब्याज लगेगा|  इस तरह किसान मित्र अपनी ऋण राशी को साल दर साल डिफाल्ट करते जाते हैं और फिर वो राशि इतनी बड़ी हो जाती है कि उसके बाद आपको बैंक के साथ लोन सेटलमेंट करने कि स्थति आ जाती है|  लोन सेटलमेंट का मतलब बैंक और किसान के बीच में समझौता|  बैंक कहती है कितना दे सकते हो और किसान अपनी हैसियत से जितना दे सकता है देता है और समझौता कर लेता है| 

    लेकिन समझौता होने के बाद फिर आपकी क्रेडिट स्कोर में लिख दिया जाता है कि आपने बैंक से लोन लिया था जिसका आपने समझौता किया है|  ऐसी स्थिति में कोई भी बैंक आपको लोन देने से कतरायेगा| 

    और फिर किसान मित्र सरकारी कर्जा माफ़ी घोषणाओं का इंतज़ार करते हैं|  जहाँ किसान मित्रों को आत्मनिर्भर बनने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड योजना मदद कर सकती है वहीँ वो उसके उपयोग को नहीं समझ पाते और ऋण के जाल में फंसते चले जाते हैं|  लोन का पैसा जब आप किसी भी मकसद के लिए लें तब उसी मकसद से यूज़ खर्च करें| 

    अगर आपने लोन किसानी-खेती करने के लुए उठाया है तो फिर उसी में यूज़ करें|  उसे किसी और काम के लिए डाइवर्ट न करें|  ऐसा करने पर आप लोन और उसका ब्याज समय पर चुका पाएंगे|  जब आप बैंक का लोन समय पर चुकायेंगे तो बैंक भी आपको लोन त्वरित देगी, बढ़ाकर देगी क्यूंकि आपका क्रेडिट व्यवहार बढ़िया रहेगा|  लोन लेना कोई गलत नहीं लेकिन लोन लेकर उस धन राशी को डाइवर्ट करने से आप लोन के जाल में फंसते चले जाते हैं|  इसलिए खुद का पैसा चाहे आप जहाँ चाहें वह लगा दें मगर लोन का पैसा वहीँ लगे जिसके लिए लोन लिया गया है| 

  • बिल गेट्स ने अपने आपको इतना अमीर कैसे बनाया

    क्या आप बिल गेट्स के बारे में जानते हैं। बिल गेट्स दुनिया के ऐसे अमीर इंसान हैं जो दुनिया भर में 20 साल से अधिक फोर्ब्स की बिलियनेयर लिस्ट के शीर्ष पर रहे हैं। अभी अभी उनका नाम आपको टॉप बिलियनेयर की लिस्ट में मिल जायेगा।

    तो फिर ये जानने की उत्सुकता बनती है कि कैसे बिल गेट्स ने अपने आपको अमीर बनाया। क्या वो पहले से ही अमीर इंसान थे। मेरा मतलब क्या उन्हे कुछ दौलत विरासत में मिली थी?

    अक्सर जो ट्रेंड मैने देखा है ऐसे वर्ल्ड फेमस लोगों में वन है कि वो कभी ये सोचकर अपने जिंदगी नहीं जी रहे थे कि उन्हे सबसे अमीर या सबसे फेमस या सबसे चर्चित इंसान धरती पर बनना है। जो बात इन सभी में कॉमन दिखती है मुझे वो ये है कि वे सभी इंसान किसी कंपटीशन का हिस्सा कभी बने ही नहीं क्योंकि उन्होंने कभी अपने आपको किसी कंपटीशन का हिस्सा माना ही नहीं।

    ये तो आम जनता को लगता है कि सबसे अमीर, सबसे चर्चित व्यक्ति हैं मगर बिल गेट्स जैसे लोग जो सबसे ज्यादा तवज्जो किसी चीज को देते आए और शीर्ष तक पहुंचे वो है उनकी सोच और सोच से जुड़े जुनून। ऐसे लोग जुनून से भरे और ऊर्जा से भरे होते हैं।

    तो आइए जानते हैं कि किस तरह बिल गेट्स दुनिया के टॉप बिलियनेयर और अब टॉप फीलेंथ्रोफिस्ट बने।

    बिल गेट्स किसी भी अमीर घराने से नहीं आते

    बिल गेट्स ने जो भी पैसा बनाया वो उन्होंने अपनी कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट से बनाया जिसके वो कोफाउंडर हैं। मतलब वो एक कामयाब कंपनी के कामयाब फाउंडर हैं।

    बिल गेट्स ने अपने दर्जनों इंटरव्यू में ये बात कही है कि वो कभी नहीं जानते थे कि उन्हे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर बिजनेस में ऐसी कामयाबी मिलेगी। कम से कम शुरुआती दिनों में तो नहीं जब वो कंप्यूटर पर घंटों बैठकर उसके लिए कोड्स लिखा करते।

    इत्तेफाक की बात है कि जिस स्कूल में बिल गेट्स पढ़ते थे उसी स्कूल में एक कंप्यूटर था जिसपर वो स्कूल समय के बाद बैठकर अपने दोस्त पॉल एलन के साथ कोड्स लिखा करते और देखते कि किस तरह वो किसी काम को कुछ इंस्ट्रक्शन देकर कर बिना इंसान की मदद से कर लेते हैं। ये बात उनको बहुत बड़ी किक देती।

    वो बस इसी बात में डूबे रहते कि क्या नायाब चीज है कंप्यूटर 💻 जो इंसान के दिमाग की तरह काम करता है। तब वो बहुत छोटे थे मगर उनको बचपन से ही दिमागी चीजों में बहुत मन लगता।

    जब वो कुछ बड़े हुए और कॉलेज जाने का समय आया तो उन्होंने भी कॉलेज में एडमिशन लिया और वो कुछ समय के लिए हार्वर्ड कॉलेज गए भी मगर वहां जाकर अपने कंप्यूटर की रोमांचकारी जिंदगी को मिस करने लगे।

    तब तक उन्होंने अपनी कंप्यूटर सॉफ्टवेयर कंपनी भी बनाने की सोच ली थी। महज 16 साल के रहे होंगे तब। लेकिन उनको तब तक ये बात पता चल चुकी थी कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की दुनिया में कुछ किया जा सकता है। और ये क्लैरिटी उन्हे मिली थी उनके कई घंटों की स्कूल की कंप्यूटर दीवानगी से।

    और फिर उन्होंने महज 17 साल की उमर में अपने दोस्त पॉल एलन के साथ मिलकर अपनी कम्पनी स्टार्ट की जिसको नाम दिया माइक्रोसॉफ्ट।

    कंपनी ने तब अपने क्लाइंट्स को जो उनके पहले कस्टमर्स थे उन्हे ये भरोसा दिलाया कि किस तरह वो कंप्यूटर कोडिंग से ऑफिस के कई काम जैसे अकाउंटिंग 🧾 और भी कई तरह के ऑफिस पेपर वर्क को कंप्यूटर के जरिए तेज़ कर सकते हैं और अपनी फैक्ट्री या कम्पनी की उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं।

    पहले पहले तो एक जवान से कॉलेज की छोकरे जैसे दिखने वाले बिल पर किसी को विश्वास नहीं हुआ मगर फिर जैसे जैसे उन्होंने अपने काम का जादू दिखाया तो उनकी उमर पीछे छूट गई और उनके काम को इज्जत और दाम दोनो मिलने लगा।

    1985 में उन्होंने अपनी कम्पनी स्टार्ट की थी और 1995 में उन्होंने अपना पहला लाइसेंस सॉफ्टवेयर मार्केट में उतारा जिसे नाम दिया गया विंडोज। Windows 95 से तो पूरी दुनिया वाकिफ है ज्यादा बताने की जरूरत नहीं। बिल गेट्स ने अपने windows 🪟 को दुनिया के हर डेस्कटॉप पर देखने का सपना देखा और यही सपना उन्हे दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में लाकर खड़ा कर दिया।

    आज बिल गेट्स और माइक्रोसॉफ्ट दोनो ही दुनिया में अपने परिचय के लिए मोहताज नहीं मगर उससे बढ़कर बात ये है कि कंप्यूटर क्रांति लाने वाले बिल गेट्स ने सचमुच दुनिया को प्रोग्रामिंग की ताकत से कितना बेहतर बनाया है इसमें कोइंडो राय नहीं।

    आज कंप्यूटर न हो तो मॉडर्न बैंकिंग की कल्पना करना असंभव है। इंटरनेट शॉपिंग की कल्पना करना असंभव है। ऑनलाइन टिकट बुकिंग की कल्पना करना असंभव है।

    बिल गेट्स ने खरबों की संपत्ति बनाई है। मगर उसके बाद अपने सिंहासन पर बैठने के बजाय वो दुनिया भर में घूम घूम कर अपनी अर्जित संपत्ति को दुनिया के हित में खर्च कर रहे हैं अपने फाउंडेशन के जरिए। उनकी एक नॉन प्रॉफिट संस्था है और उसका लक्ष्य है कि गरीब देशों जैसे अफ्रीका और एशिया में स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार लाना।

    आप उन्हे बड़ी आसानी से उनके ट्विटर हैंडल, इंस्टा पेज या फिर उनके ब्लॉग पर अपने फोजंडेशन से जुड़ी तस्वीरें और अन्य कार्य शेयर करते मिल जाएंगे।

    अमीर बनने का कोई घमंड नहीं है। और बड़े ही सरल इंसान हैं और सबसे बड़ी बात जो मुझे उनका फैन बनाती है कि वो आज भी उतने ही जुनून से भरे रहते हैं जितने वो अपने स्कूल डेज में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग को लेकर थे।

  • ट्रेन ट्रैवल इंश्योरेंस स्कीम (Train Travel Insurance in Hindi)

    ट्रेन एक्सीडेंट में कुछ दिनों पहले तकरीबन 300 लोग ईश्वर को प्यारे हो गए l ये पिछले कई सालों में सबसे भयावह ट्रेन एक्सीडेंट में एक थी। 

    क्या आपको जानकारी है इस बात की की आप अपने ट्रेन के सफर को भी इंश्योरेंस कर सकते हैं। चलिए इस ब्लॉग पोस्ट में बात हो जाए ट्रेन ट्रैवल इंश्योरेंस स्कीम की। 

    ट्रेन ट्रैवल इंश्योरेंस में यात्री अपने लाइफ का इंश्योरेंस कर सकते हैं। ट्रेन ट्रैवल इंश्योरेंस करने वाले को प्रीमियम के रूप में 37 पैसे प्रीमियम लगते हैं। वैसे तो देखा जाए तो 37 पैसे का प्रीमियम कुछ भी नहीं है मगर फिर भी केवल 54% यात्री ही इस इंश्योरेंस स्कीम का लाभ लेते हैं। 

    ट्रेन ट्रैवल इंश्योरेंस स्कीम आपको 10 लाख रुपए का इंश्योरेंस देती है। यदि आप के जीवन को खुदा न खासता कुछ होता है तो आपके परिवार जन को 10 लाख रुपए की राशि दे दी जाती है। यदि आप क्षतिग्रस्त होंजाते हैं और गहरी चोटें आपको आती हैं तो उसी अनुपात में आपको क्लेम सेटलमेंट दिया जायेगा। 

    स्कीम में रजिस्टर करने के लिए आपको irctc की वेबसाइट से टिकट बुक करना होता है। जब आप अपनी सीट ऑनलाइन irctc की वेबसाइट पर बुक करते हैं तो पेमेंट विंडो खुलने से पहले ही एक ऑप्शन मिलता है। इस ऑप्शन में पहले से टिक लगा रहता है। ये टिक उसे इंश्योरेंस स्कीम के लिए होता है। 

    अगर आप कुछ भी उस टिक को नहीं छेड़ते तो आप इंश्योरेंस के लिए 37 पैसे का प्रीमियम अपने रेल टिकट के साथ पे कर देते हैं। यदि उस टिक को अनचेक कर दिया तब आपका इंश्योरेंस ऑप्शन कैंसल कर दिया जाता है। 

    देखिए हम सभी ये कहकर अपना इंश्योरेंस नहीं कराते कि हमें क्या होगा। कई लोग तो ये भी कहते है कि उन्हे इंश्योरेंस की जरूरत नहीं। मगर ये सोच गलत है। 

    अगर हम जोखिम भरी जिंदगी जी रहे हैं तो उसे स्वीकार कर लेl। जहां देखिए वहीं कोई न कोई रिस्क जरूर मंडराता रहता है। मगर हम अपनी लाइफ की रिस्क को बड़े आराम से नजरंदाज करते हैं। 

    दुर्घटना किसी को पूंछ कर नहीं आती है। इसलिए अपने परिवार के ऊपर आपका साया हमेशा बना रहे इसलिए अपना इंश्योरेंस जरूर करवाएं। 

  • नई पेंशन स्कीम या पुरानी पेंशन स्कीम

    पेंशन स्कीम्स अब चुनावी मुद्दा बनता दिखाई दे रहा है। नई पेंशन स्कीम या फिर ओल्ड पेंशन स्कीम?ये सवाल अब टूर पकड़ रहा है। 

    कुछ राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों को वापस ओल्ड पेंशन स्कीम के दायरे में ला दिया है। NPS को हटाकर OPS को स्थापित कर दिया है। 

    NPS और OPS क्या हैं और उनमें बुनियादी फर्क क्या है? आइए इस पोस्ट में जानें। 

    NPS – न्यू पेंशन स्कीम 

    सन 2004 में NPS को केंद्र के कर्मचारियों के लिए लागू किया गया। NPS में वेतनभोगियों को अपने सैलरी से 12 पर्सेंट कटवाना होता है और इतना ही अनुदान सरकार वेतनभोगी के फंड में जमा कर देती है। हर महीने। ये 12 पर्सेंट basic + DA के ऊपर कैलकुलेट होता है। अब ये अनुदान सरकार ने बढ़ाकर 14 पर्सेंट कर दिया है। 

    फंड में रिटायरमेंट तक अनुदान जमा होगा। फिर उस फंड का रिटायरमेंट होने पर पेंशन भोगी 60% एक मुश्त ले पाएंगे और बाकी 40 प्रतिशत की पेंशन ऐनुटी लेंगे जिससे उन्हें मासिक पेंशन प्राप्त होगी। 

    फंड के रख रखाव के लिए पेंशन फंड मैनेजर नियुक्त किए गए हैं। फंड मार्केट से लिंक रहेगा। PFRDA को इसका ट्रस्टी बनाया गया है। 

    OPS में कर्मचारी को कुछ भी अनुदान नहीं देना होता है। रिटायरमेंट होने पर आखरी सैलरी जो भी होती है उसका 40 से 50 पर्सेंट उनकी पेंशन बनती है। 

    OPS और NPS के बीच अंतर

    OPS और NPS के बीच में कई अंतर सामने आए हैं। आइए एक एक करके सभी को जानें और समझें। 

    1. OPS में कितनी पेंशन मिलेगी, ये बात फिक्स हैं। आपको रिटायरमेंट होने पर कम से कम 40 पर्सेंट से 50 पर्सेंट मिलेगा। NPS में क्योंकि फंड मार्केट से लिंक है, कितना मिलेगा ये मार्केट की स्थिति पर डिपेंड करेगा। 
    1. OPS में समय समय पर जिस तरह वेतन भोगियों को DA मिलता है, वैसे ही पेंशन धारियों को भी DA मिलता है। और जब कभी नया वेतनमान लागू होता है, पेंशन धारियों को भी इसका बेनिफिट मिलता है। 
    1. NPS में डिफाइंड कंट्रीब्यूशन का सिद्धांत लागू होता है जहां आपका एंप्लॉयर आपको सर्विस पीरियड में कंट्रीबाइट करेगा। उसके बाद उसकी कोई भी जवाबदेही नहीं रहेगी। 

    वहीं OPS डिफाइंड बेनिफिट के सिद्धांत पर आधारित है जिसमे आपको आपका एंप्लॉयर जीवन पर्यंत बेनिफिट देने के लिए बाध्य है। महंगाई भत्ता (DA) और नया वेतनमान इत्यादि।

    जैसे कि हम देख पा रहे हैं कि NPS को लागू किए 20 साल होने को हैं और NPS में रिटायरमेंट होने शुरू हो गए होंगे या अब होंगे। अभी NPS से कुछ खास फायदा पेंशन धारी को नहीं दिख रहा है। 

    उसे पता नहीं है कि जो इसे पेंशन मिलेगी क्या वो महंगाई को एडजस्ट कर पाएगी? क्या जो मार्केट से रिटर्न आएगा वो पर्याप्त होगा? 

    रिटायरमेंट की उमर में सभी निश्चितता चाहते हैं। इसलिए जो भी मिले उसकी पहले से कोई गारंटी मिले ताकि लोग अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग कर लें।